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Introduction : श्री हनुमान प्रागट्य भगवान शिव, श्री हनुमानजी के आराध्य देव और श्रीराम की लीला के दर्शन हेतु और मुख्यतया उनकी श्रीराम के शुभ कार्यों में सहायता प्रदान हेतु अपने अंश ग्यारहवें रुद्र से शुभतिथी अनु शुभ मूर्हत में माता श्री अंजनी के गर्भ से श्री पवनपुत्र महावीर हनुमानजी के रुप में धरती पर उनका प्रागट्य हुआ । मूल ग्यारहवें रुद्र भगवान शिव के अंशज, भगवान श्री विष्णु (श्रीराम) की सहायता हेतु प्रगट हुए । श्री अंजनीमाता के पति श्री केसरी होने के कारण श्री हनुमानजी केसरी नंदन भी कहे जाते हैं । उसकी कथाएं कथा (1) माता श्री अंजनी और कपिराज श्री केसरी हनुमानजी को अतिशय प्रेम करते थे । श्री हनुमानजी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे । इसी दौरान उनकी नजर क्षितिज पर पड़ी । सूर्योदय हो रहा था । बाल हनुमान को लगा की यह कोई लाल फल है । (तेज और पराक्रम के लिए कोई अवस्था नहीं होती । यहां पर तो श्री हनुमान जी के रुप में माताश्री अंजनी के गर्भ से प्रत्यक्ष शिवशंकर अपने ग्यारहवें रुद्र में लीला कर रहे...